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अयोध्या में दलितों की जमीन लेने के लिए अफसरों-नेताओं-ट्रस्ट का रचा गया मायाजाल!

Ayodhya land deal: पहले ट्रस्ट ने दलितों से जमीन खरीदी, फिर उसी जमीन को ट्रस्ट के खिलाफ लंबित जांच और मुकदमें में शामिल अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों के नाम खरीद ली. जमीन खरीदने वालों में भाजपा के दो मौजूदा विधायक भी शामिल हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण का कार्य जोरों पर है. इस बीच खबर है कि  नेताओं-अफसरों के रिश्तेदारों ने अयोध्या में नियमो का उल्लंघन करके जमीन खरीद ली है. इस बार चर्चा के केंद्र में है महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट. आरोप है कि ट्रस्ट ने दलित की जमीन अपने विश्वसनीय दलित को दिलाई फिर उसे ट्रस्ट को दान करा दिया. फिर उसी जमीन को अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों के नाम खरीद ली. इसमें ऐसे अधिकारी भी हैं जो ट्रस्ट के खिलाफ जांच कर रहे थे. जमीन खरीदने वालों में भाजपा के दो विधायक भी शामिल हैं. हालांकि इनमें से एक की सदस्यता रद्द हो चुकी है. 

क्या है पूरा मामला

महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने 1990 से 1996 के बीच बरहटा मांझा और आस-पास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कई जमीनें खरीदीं. इनमें से कई जमीन ऐसी हैं जिन्हें खरीदने के लिए नियमों और कानूनों को ताक पर रख दिया गया. उत्तर प्रदेश भू-राजस्व संहिता में उल्लेख किए गए कानूनों के तहत गैर दलित को दलित से जमीन खरीदने के लिए जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है या फिर दलित की तरफ से उस भूमि को आबादी की भूमि में परिवर्तित कराना होता है. लेकिन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने इसका जुगाड़ निकाल लिया. ट्रस्ट के लोगों ने पहले अपने भरोसे के दलित व्यक्ति के नाम पर दलितों से जमीन खरीद ली. फिर उसी जमीन को 1996 में दान पत्र के जरिए ट्रस्ट के नाम करा ली. सरल शब्दों में कहें तो जिस दलित व्यक्ति के नाम दलितों से जमीन खरीदी गई, उसी दलित व्यक्ति ने महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को वह पूरी जमीन दान में दे दी. इस तरह पूरी जमीन राजस्व अभिलेखों में महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट के नाम दर्ज हो गई.

ट्रस्ट के नाम होने में भी किया गया कानूनों का उल्लंघन

दान में दी गई जमीन बिना रजिस्टर्ड दान अभिलेख के सीधे-सीधे ट्रस्ट के नाम दर्ज हो गई. इस तरह ट्रस्ट को जमीन की प्रकृति भी चेंज नहीं करानी पड़ी और जमीन अपने नाम दर्ज कराने के लिए रजिस्ट्री के लिए लाखों रुपए के स्टांप भी नहीं देने पड़े.

यह पेपर अयोध्या के मौजूदा कमिश्नर एमपी अग्रवाल के परिजनों द्वारा खरीदी गई जमीन का है.
यह पेपर अयोध्या के मौजूदा कमिश्नर एमपी अग्रवाल के परिजनों द्वारा खरीदी गई जमीन का है.

ऐसे सामने आया पूरा मामला

जिन दलितों की जमीन खरीदी गई, उनमें से एक का नाम महादेव था. महादेव ने बोर्ड ऑफ रेवेन्यू यानी राजस्व बोर्ड लखनऊ में शिकायत कर दी. आरोप लगाया कि अवैध तरीके से उसकी जमीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट के नाम स्थानांतरित कर दी गई है. इसी शिकायत के बाद फैजाबाद के अतिरिक्त आयुक्त शिव पूजन और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट गोरेलाल शुक्ला के निर्देशन में एक जांच कमेटी बनी. कमेटी को इसी साल 2021 में अयोध्या के मौजूदा कमिश्नर एमपी अग्रवाल की ओर से मंजूरी दी गई. इसके बाद अफसरों के रिश्तेदारों ने ट्रस्ट से जमीन खरीद ली.

पुलिस और अफसरों के इन रिश्तेदारों ने ट्रस्ट से खरीदी जमीन

अयोध्या की कमिश्नर एमपी अग्रवाल के ससुर केशव प्रसाद ने 25 बाई 30 वर्ग मीटर और उनकी बहन के पति आनंद वर्धन ने 1260 वर्ग मीटर जमीन खरीदी.
मुख्य राजस्व अधिकारी पुरुषोत्तम दास गुप्ता के साले अतुल गुप्ता की पत्नी तृप्ति गुप्ता ने जमीन खरीदी.
डीआईजी दीपक कुमार की साली महिमा ठाकुर के नाम से जमीन खरीदी गई.
अयोध्या में एसडीएम और अतिरिक्त मजिस्ट्रेट आयुष चौधरी की चचेरी बहन शोभिता रानी के नाम से भी जमीन खरीदी गई.
इलाहाबाद के कमिश्नर रहे उमाधर द्विवेदी ने भी जमीन खरीदी.

सत्ता पक्ष के विधायकों ने भी रिश्तेदारों के नाम से खरीदी जमीन

अयोध्या जनपद की गोसाईगंज विधानसभा से विधायक रहे इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी के बहनोई राजेश मिश्रा के नाम से जमीन खरीदी गई.


अयोध्या के मौजूदा भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता के भतीजे तरुण मित्तल के नाम से जमीन खरीदी गई.

खरीदी गई सभी जमीन महर्षि विद्यापति ट्रस्ट से जुड़ी है

पुलिस, प्रशासन के अधिकारियों और सत्ता पक्ष के नेताओं के रिश्तेदारों की ओर से खरीदी गई सभी जमीन महर्षि विद्यापीठ ट्रस्ट से जुड़ीं हैं. बड़ा सवाल यह है कि जमीन खरीद-फरोख्त को लेकर जो महर्षि विद्यापीठ ट्रस्ट कटघरे में है, उसी से अधिकारियों और नेताओं के परिजनों ने कैसे जमीन खरीद ली? क्या इन अधिकारियों या फिर नेताओं को इसकी भनक नहीं थी? सवाल इनकी संलिप्तता पर भी खड़े होते हैं. फिलहाल, जमीन खरोद-फरोख्त मामले में शासन से जांच के आदेश के बाद हड़कंप मचा है. कोई भी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. सभी एक ही बात कह रहे हैं कि उनका तो इस जमीन से कोई लेना-देना नहीं है. उनके रिश्तेदारों ने जो जमीनें खरीदी है, वह उनका निजी विषय है.

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